भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश में दिए थे अर्जुन को धर्म और कर्म का ज्ञान

गीता के उपदेशों पर चलने से व्यक्ति को कठिन से कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।

जिनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभाजित रहती है वो अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाते। 

भगवान समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिकऔर उनसे ही प्रत्येक वस्तु उत्पन्न होती है। 

इस संसार में सारे जीव भगवान के ही अंश हैं ।  

काम, क्रोध तथा लोभ ये तीन नरक के द्वार हैं ।  

जहां भगवन हैं वहां ऐश्वर्य, विजय और अलौकिक शक्ति हमेशा रहती है ।  

भगवान सबके ह्रदय में विराजमान हैं और उन्ही से ही स्मृति तथा विस्मृति आती है। 

भगवान को जानने के लिए एकमात्र साधन हैं भक्ति। 

अंत समय में जो जिस भाव का स्मरण करता है वो उसी भाव को प्राप्त होता है ।  

प्रकृति निरंतर परिवर्तित  होती रहती है। 

ज्ञान को प्राप्त करने के लिए विनम्रता आवश्यक है। 

वर्ण विभाजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र) संबधित कर्म के अनुसार किये गए हैं। 

आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है।